बात एक ऐसी खबर की जो चमोली से सामने आई है, यहां के दशोली ब्लॉक के हाट गांव में दो दिन पहले मकानों में जेसीबी मशीनें और खूब हथौड़े चले। ये पूरी कवायद इस गांव को खाली करने के लिए की गई। मकानों को ध्वस्त करने की कार्रवाई पुलिस प्रशासन की देखरेख में हुई। दरअसल ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इस गांव को बिजली परियोजना के लिए अधिगृहित किया गया है। 122 परिवारों वाला हाट गांव अलकनंदा नदी पर बन रहे 440 मेगावाट की पीपलकोटी विष्णुगाढ़ जल विद्युत परियोजना यानि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए अधिगृहित किया गया है, जिसका जिम्मा टीएचडीसी के पास है। अब बात दरअसल ऐसी है कि हाट गांव के लोगों का कहना है कि उन्हें उचित मुआवजा दिए बिना और उनकी पूरी मांगे माने बिना ही ध्वस्तीकरण की ये कार्रवाई शुरु कर दी गई ।इसीलिए लोगों ने इस कार्रवाई का पुरजोर विरोध किया। उस दिन किस तरह से ग्रामीणों के विरोध के बीच यहां उनके पुरखों के बनाए मकानों पर धडाधड़ जेसीबी चला दी गई। अलकनन्दा नदी पर निर्माणाधीन 440 मेगावाट की पीपलकोटी विष्णुगाढ़ जल विद्युत परियोजना जल विद्युत परियोजना के प्रभावित गांव हाट के लिए बुधवार को दिन भारी गुजरा। सुबह नींद खुलने के साथ ही गांव में भारी पुलिस-फोर्स के साथ टीम ध्वस्तीकरण के लिए पहुंच गई। इसके साथ ही हंगामा और विरोध शुरू और दिनभर तनाव के बीच जीसीबी मशीनें एक-एक कर मकान तोड़ती चली गई। बुधवार तड़के हाट गांव के आसपास पुलिस फोर्स का जमवाड़ा लगना शुरू हो गया था। लोगों की नींद टूटी तो गांव के हर रास्ते पर पुलिस फोर्स थी। यहां आवाजाही पर पूरी तरह प्रतिबंध था। गांव के जिस हिस्से में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जानी थी, उस तरफ तो गांव के ही दूसरे लोगों को नहीं जाने दिया जा रहा था। जिसका लोगों ने जबरदस्त विरोध किया। उनकी पुलिस-प्रशासन और टीएचडीसी अफसरों के साथ तीखी बहस भी हुई। हंगामा बढ़ता देख पुलिस ने ग्राम प्रधान राजेन्द्र हटवाल, ज्येष्ठ प्रमुख पंकज हटवाल, युवक मंगल दल के अध्यक्ष अमित गैरोला और कृष्ण हटवाल को हिरासत में ले लिया। इन्हें गांव से जिला मुख्यालय गोपेश्वर पहुंचाने के साथ ही ध्वस्तीकरण की कार्रवाई शुरू कर दी गई। जब तक गांव में ध्वस्तीकरण की कार्रवाही चलती रही। इन्हें पुलिस हिरासत में रखा गया । साफ है कि उत्तराखण्ड में बनने वाली बिजली परियोजनाओं से जल ,जंगल ,जमीन तो गई लेकिन उसके बदले मिला ये सब कुछ। चमोली का हाट गाँव जोकि प्रभावित है वहां मकानों को ध्वस्त करने जब टीम पहुंची तो ग्रामीणों ने कम्पनी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया। इनमें से एक ग्रामीण महिला ने एनटीपीसी अधिकारी को किस तरह से जमकर फटकार लगाई।
वहीं अपनी आंखो के सामने अपने पुरखों की डाली नींव पर बनाए मकान को उजड़ता देख ग्रामीण खुद को रोक नहीं पाए एक प्रेस वार्ता में कैसे अपने ऊपर टूटे दुखों के पहाड़ को बयां करते करते प्रभावित ग्रामीण रो पड़े। कोई श्राद्ध तर्पण नहीं कर पाया, किसी के गाढ़ी कमाई, गहने जवाहारात तक उसे नहीं मिल पाए। दरअसल इस पूरे मामले पर हाट गांव के प्रधान राजेंद्र भट्ट का कहना है कि गांव वाले हमेशा कंपनी के निर्माण कार्यों में उसका सहयोग देते रहे हैं उन्होनें बताया कि गांव के 90% परिवारों ने विस्थापन कर लिया है लेकिन कंपनी द्वारा स्वैच्छिक विस्थापन का विकल्प ग्रामीणों के सामने रखने के बाद यहां रह रहे 10 प्रतिशत परिवार इसी समझौते के तहत गांव में ठहरे हुए थे। प्रधान ने ये भी बताया कि ग्रामीणों-विधायक और प्रशासन के बीच आगामी 3 अक्टूबर तक कुछ समझौतों पर बात हुई थी लेकिन टीएचडीसी और प्रशासन ने अपने इस समझौते की समय सीमा को दरकिनार करते हुए बुधवार को हाट गांव पहुंचकर जोर जबसदस्ती मकानों को तोड़ने की कार्रवाई शुर कर दी। वहीं इस पूरे मामले में पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र सिंह भंडारी ने नाराजागी जताते हुए इस कार्रवाई की घोर निंदा की है। उधर चुनाव नज़दीक आते देख कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को तुरंत उठा लिया और अपनी सियासी रोटी सेंकना शुरु कर दिया, अब इनसे कोई ये पूछे की आज विरोध कर रहे हो तब कहां थे जब इन बेचारे लोगों के घरों पर टीएचडीसी का हथौड़ा चल रहा था जब जेसीबी एक के बाद एक पूरे गांव को उजाड़ देने के मकसद से घरों को रौंद रही थी। बहरहाल, ऐसा नहीं है कि टीएचडीसी और प्रशासन के खिलाफ या उनकी वादाखिलाफी के खिलाफ पहली बार आवाज़ उठी हो, बीते 20 अगस्त को एक ऐसा वाक्या हुआ था जिसने इस ओर ध्यान खींचा था। अधिकारों के लिए आंदोलन कर रहे हाट गांव के ग्रामीणों , नवयुवक संघ अध्यक्ष सहित पांच लोगों ने अपने ऊपर डीजल डालकर आत्मदाह का प्रयास किया था । दरअसल लंबे समय से टीएचडीसी एचसीसी विद्युत परियोजना निर्माण से प्रभावित ग्रामीणों ने अपनी मांगों को लेकर कई बार वार्ता की और प्रशासन के सामने भी कंपनी द्वारा की जा रही वादाखिलाफी की शिकायत की थी। लेकिन लगातार ग्रामीणों की अनदेखी की जा रही है। शासन और कंपनी प्रबंधन की तरफ से ग्रामीणों के साथ संवेदनहीन व्यवहार किया जा रहा है। उनके साथ जो समझौते कंपनी निर्माण के समय हुए थे। उन सब को दरकिनार किया जा रहा है । यही वजह रही की ग्रामीणों ने हताश व मजबूर होकर आत्मदाह जैसा कदम उठाया।
तो साफ है दोस्तों चाहे वो टिहरी बांध के वक्त हुआ विस्थापन हो या फिर अलग अलग विद्युत परियोजनाओं को लेकर गांव के गांव खाली कराने की कार्रवाई । देखा ये गया है कि जब कभी किसी कंपनी के हवाले इस काम को अंजाम देने की जिम्मेदारी दी जाती है तो उसमें ग्रामीणों के हितों उनके सरोकारों और उनकी संतुष्टि के साथ समझौता किया जाता है जबकि ऐसे मामलों में शासन का सीधा हस्तक्षेप होना चाहिए क्योंकि ये वही ग्रामीण हैं जिन्होनें वोटर के तौर पर आपको चुना है ताकि आप उनके सुख दुख में उनके साथ उनकी सुनने केलिए हर समय खड़े हों। तो उम्मीद ये की जाती है कि धामी सरकार इस मामले को संजीदगी से लेगी और जो कुछ नुकसान हुआ है या फिर जो भी परेशानी हुई है उसकी जल्द से जल्द क्षतिपूर्ति की जाए और दोषिय़ों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई हो। विकास के लिए विस्थापन का दर्द झेलना कोई साधारण बात नहीं है। कोई मुआवजा उस दर्द को कम नहीं कर सकता। दोस्तों इस पूरे मामले में आपकी राय क्या है हमें कमेंट में जरूर लिखें ।आप इस मामले को किस तरह से देखते हैं और इन लोगों को इंसाफ मिले ग्रामीणों की बात उनके हक की आवाज को उठाने के लिए आप इस वीडियो को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।
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