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Writer's pictureBhuvan Sharma

21 साल का हुआ उत्तराखंड, लेकिन नहीं मिली स्थायी राजधानी


उत्तराखंड आज अपनी स्थापना के 21 साल होने का जश्न मना रहा है. इन 21 सालों में उत्तरांचल से उत्तराखंड बने इस राज्य ने काफी उतार चढ़ाव देखे. कई आपदाओं का दंश झेला तो कई मौकों पर अलग अलग क्षेत्रों में अपनी पहचान कायम की. इन सब के बीच एक उत्तर है जो बीते 21 सालों में आज तक उत्तराखंड को नहीं मिला, आखिर स्थायी राजधानी कब ?

9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) नाम का एक 27वां राज्य अस्तित्व में आया.

इतिहास में नौ नवंबर की तारीख देवभूमि उत्तराखंड के स्थापना दिवस के तौर पर दर्ज है. अलग राज्य की मांग को लेकर कई सालों तक आंदोलन चलाया गया और एक लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) नाम का एक 27वां राज्य अस्तित्व में आया. करीब 6 साल तक (2000-2006) इस राज्य का नाम उत्तरांचल ही था लेकिन स्थानीय लोगों की मांग और भावनाओं को देखते हुए जनवरी 2007 में इसका नाम उत्तराखंड रख दिया गया.

चीनी सैनिकों की घुसपैठ बढ़ी

आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि के अलावा ये राज्य सामरिक नज़रिए से भी बेहद महत्तवपूर्ण हैं. उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से उत्तराखंड की सीमाएं लगी हुई हैं. अक्सर चीनी सैनिकों की घुसपैठ की खबरें आप देखते पढ़ते रहते हैं. हाल में भी कुछ ऐसी घटनाएं यहां घट चुकी हैं. इसलिए इस शांत प्रदेश में सैन्य चहलकदमियां भी खूब होती हैं.

अध्यात्म और प्रकृति का अनूठा संगम

उत्तराखंड के आगे देवभूमि शब्द को जोड़ा जाता है, क्योंकि कई प्राचीन धार्मिक स्थल यहां मौजूद है, चार धाम (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री) के अलावा हिंदू धर्म में सबसे पवित्र माने जाने वाली गंगा और यमुना नदी भी यहीं से निकलती है. ग्लेशियर, घने जंगल, बर्फ से ढ़की पहाड़ियां, नदियां उत्तराखंड के समृद्ध प्राकृतिक संसाधन हैं.

राजधानी की लड़ाई अब भी जारी

लेकिन दुर्भाग्य है कि राज्य बनने के 21 साल बाद भी उत्तराखंड को स्थायी राजधानी नहीं मिल सकी। अलग उत्तराखंड की मांग को लेकर आंदोलन करने वाले लोगों और आंदोलनकारियों की मांग थी कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाया जाए. लेकिन ये हमेशा से एक चुनावी मुद्दा ही बनकर रह गया हकीकत में ऐसा कर पाने में सारी सरकारें फेल साबित हुई हैं. फिहलाल जो राजधानी देहरादून है वो अस्थायी है और बीजेपी सरकार में गैरसैंण कोे ग्रीष्मकालीन राजधानी बनया गया।

साफ है कि सत्ता का सुख भोगने वाली हर पार्टी की सरकारों ने देहरादून पर ही फोकस किया. पहाड़ों की अस्मिता और पहाड़ के असल मुद्दों के समाधान के लिए नीतियां पहाड़ में बैठकर ही बनाई जा सकती है. यही मांग है इस पर्वतीय प्रदेश की जो आज 21 साल बाद भी पूरी नहीं हो पाई है.

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